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शहर डहर के जवईया चिकन चातर के रेंगईया
दया मया लेजा रे मोर गाँव ले

बईठ बर छईहा बगरे मन बईठाले
बईठ नीम छईहा मा घम आ छईहा ले
तरिया के पानी मा मन भर नहा ले
नरवा के पानी पी हिरदे जुड़ाले
चार पहर रतिहा परछी मा पहा ले
थके हारे तन ला नवा बल बांधले

हो शहर डहर के जवईया चिकन चातर के रेंगईया
दया मया लेजा रे मोर गाँव ले

दु दिन के चकचक चक्कर मा भुला झन
डोरी हे कच्चा जीवन ला झूला झन
मौत होये के पथरा मा ठोकर तैं खा झन
मधु मद मा मरमर के जियत भूंजा झन
ले जाही काल पकड़ सब नगा के
जे भेजे हाबे हम सब ला बना के

हे दुनिया के जे चलईया हाबे बड़ा निरदईया
दया मया लेजा रे मोर गाँव ले

हो शहर डहर के जवईया चिकन चातर के रेंगईया
दया मया लेजा रे मोर गाँव ले
</poem>
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