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<poem>
चिटिक अँजोरी निर्मल छईहा
गली गली बगराए वो
पुन्नी के चंदा मोरे गाँव मा

अषाढ़ महीना लुका चोरी
खेलत कुदत नाचे
सावन लागे कोन दुल्हिन कस
डोलिया देखे झांके
भादो के महीना झिंगरी महल ले
भादो के महीना झिंगरी महल ले
तैं नैनां चमकाये वो
पुन्नी के चंदा मोरे गाँव मा

कातिक महीना भाई बहिनी कस
रूप तोरे मन भावे
अघहन पूस तोरे महीना ला
बरन बरन कब हारे
कुवाँर महीना झर झर मोती
कुवाँर महीना झर झर मोती
अमृत कस बरसाये वो
पुन्नी के चंदा मोरे गाँव मा

जेठ मांघ म चटक चांदनी
तिरिथ बरस पुन बांटे
जेठ अऊ बैसाख म शीतल
जुड म हवारी लाए
फागुन महीना झमक झमा झम
फागुन महीना झमक झमा झम
रंग गुलाल उडाये वो
पुन्नी के चंदा मोरे गाँव मा
</poem>
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