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दिया बाती के तिहार / हरि ठाकुर

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दिया बाती के तिहार
होगे घर उजियार
गोरी, अँचरा के जोत ल जगाये रहिबे।

दूध भरे भरे धान
होगे अब तो जवान
परौं लछमी के पाँव
निक बादर के छाँव
सुवा रंग खेतखार, बन दूबी मेढ़ पार
गोई, फरिका पलक के लगाये रहिबे।

जूड़ होगे अब घाम
ढिल्ला रात के लगाम
आंखी सपना के घर
मन, देवता के धाम
करे करे हे सिंगार, खड़े खड़े हे दुआर
गोई, मया के भरम में ठगाए रहिबे।
</poem>
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