Changes

झन मारो गुलेल / हरि ठाकुर

993 bytes added, 18:05, 1 नवम्बर 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरि ठाकुर |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatChhattisgarhiRac...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरि ठाकुर
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatChhattisgarhiRachna}}
<poem>
झन मारो गुलेल
झन मारो गुलेल
बाली उमर लरकईया

बिछिया बोले झुमका डोले
अंग अंग मुस्काए
हवा मा अचरा उड़-उड़ जाए
मोर जी घबराए
बाजत है बैरी पैजनियां

झन मारो गुलेल
झन मारो गुलेल
बाली उमर लरकईया

नार नवेली मैं अलबेली
रतनारे हैं नैन
हो मोरे मधु छलकत है बैन
गदराए है बैन
पीछे पड़े मोरे सईया

झन मारो गुलेल
झन मारो गुलेल
बाली उमर लरकईया
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits