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::::सच हम नहीं , सच तुम नहीं::::सच है सतत महज़ संघर्ष ही ।ही।
संघर्ष से हट कर हटकर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम।जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृन्त वृंत से झर कर झरकर कुसुम।::::जो पंथ लक्ष्य भूल रुका नहीं,::::जो हार देखा देख झुका नहीं,जिसने मरण को भी लिया हो प्रणय पाथेय माना जीत, है जीवन वही।उसकी ही रही।::::सच हम नहीं , सच तुम नहीं।नहीं सच है महज़ संघर्ष ही।
ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे।
जो है जहाँ चुपचाप अपने आपसे आप से लड़ता रहे।::::जो भी परिस्थितियाँ मिलें,::::काँटें काँटे चुभें, कलियाँ खिलें,टूटे हारे नहीं इन्सानइंसान, बस सन्देश यौवन है जीवन का संदेश यही।::::सच हम नहीं , सच तुम नहीं।नहीं सच है महज़ संघर्ष ही।
हमने रचा आओ हमीं अब तोड़ दें इस प्यार को।
यह क्या मिलन, मिलना वही जो मोड़ दे मँझधार मंझधार को।::::जो साथ कूलों फूलों के चले,::::जो ढाल ढ़ाल पाते ही ढले,ढ़लेयह ज़िन्दगी ज़िंदगी क्या ज़िन्दगी ज़िंदगी जो सिर्फ़ पानी-सी बही।::::सच हम नहीं , सच तुम नहीं।नहीं सच है महज़ संघर्ष ही। संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित।पर झाँककर देखो दृगों में, हैं सभी प्यासे थकित।जब तक बँधी है चेतनाजब तक हृदय दुख से घनातब तक न मानूँगा कभी इस राह को ही मैं सही।सच हम नहीं, सच तुम नहीं सच है महज़ संघर्ष ही।
अपने हृदय का सत्य अपने आप हमको खोजना।
अपने नयन का नीर अपने आप हमको पोंछना।
::::आकाश सुख देगा नहीं,::::धरती पसीजी है कहीं,?हर एक राही जिससे हृदय को भटक कर ही दिशा मिलती रहीबल मिले है ध्येय अपना तो वही।::::सच हम नहीं , सच तुम नहीं। बेकार है मुस्कान से ढकना हृदय की खिन्नता।आदर्श हो सकती नहीं तन और मन की भिन्नता।::::जब तक बंधी सच है चेतना,::::जब तक प्रणय दुख से घना,तब तक न मानूँगा कभी इस राह को ही मैं सही।::::सच हम नहीं सच तुम नहीं। महज़ संघर्ष ही।
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