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खण्ड-7 / आलाप संलाप / अमरेन्द्र

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परोपकार के उस अभिनय में पाप-अयश को लोगे
अगर काठ हो वही दिखो तुम, पाहन नहीं दिखो तुम
लेखक हो, तो सही-सही ही बातें सभी लिखो तुम ।’’तुम।’’
तिमिर देश का उदर फाड़कर ऊपर आता सविता
चाहे जितना दीन-हीन हूँ, जितना लगूँ फकीर
कविता मेरे अगर साथ है, मैं तो शाह-अमीर ।’’अमीर।’’
कोई स्वप्न भयानक-सा तुम उन दिवसों में लगते
कैसा था वह काल निठुर, क्या भूल गये अमरेन्दर
तम का था साम्राज्य उजागर; डूबा हुआ निशाकर ।’’निशाकर।’’
</poem>
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