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कृत्रिमता / डी. एम. मिश्र
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08:54, 1 जनवरी 2017
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<poem>
कृत्रिमता की कोख से
नहरें निकलती हैं
नदियाँ नहीं
आविष्कार के मलवे
इकट्ठा होते हैं
खुशियाँ नहीं
जानवरों की दुनिया
हमसे अच्छी है
वह प्यार करते हैं
क़समें नहीं खाते
औलादें पैदा करके
उन्हें बड़ा करते हैं
उम्मीदें नहीं पालते
सच का विश्वास
अनन्त होता है
जहाँ क़ुदरत का हाथ
नहीं पहुँच पाता
वहाँ भी
कोई हाथ होता है
</poem>
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