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मैं परधान / डी. एम. मिश्र
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10:28, 1 जनवरी 2017
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<poem>
तू भिखमंगा
बिल्कुल नंगा
मुँह में बस
दस हाथ जु़बान
सूखी हड्डी
सीना तान
मेरे हाथ में
धनुहा बान
तेरी चमड़ी
मेरा जूता
तेरा भेजा
मेरा कीमा
पूछे अब भी
मेरी सीमा
मुझसे अधिक कौन सयान
तू चिरकुट मैं परधान
मैं सूखे जंगल का मधुवन
तेरा तीस का लटका जोबन
मिट्टी एक
अलग मकान
तू भिखमंगा दर-दर भटके
ढूढ़े चाउर - दाल - पिसान
मेरी जेब में हिन्दुस्तान
</poem>
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