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सच्चाई / डी. एम. मिश्र
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12:03, 1 जनवरी 2017
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सन्नाटे में
रात का एक कोना
यादों के
घने जंगल चीरकर
आँखों में समाया रहा
टकटकी बाँधे
अँधेरे में
हाथ मारता रहा
कोशिश में लगा रहा
कुछ पकड़ने की
तभी कोई जुगनू चमका
और रोशनी की शक्ल में
उजाला बनकर
फैलता चला गया
पूरी हथेली पर
तृष्णा कहती है
हथेली को
मुट्ठी में बदल दूँ
सच्चाई कहती है
क्या मिलेगा
</poem>
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