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अन्त नहीं / डी. एम. मिश्र

386 bytes added, 12:35, 1 जनवरी 2017
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आँखों का पानी
निकलकर
कहाँ जाता हे
बादल तो
अलग हो जाता है
बूँदों को टपकाकर
और प्रवाह का
अन्त नहीं
समुद्र के आगे भी
समुद्र है
ज़मीन के नीचे
और ज़मीन है
</poem>
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