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जो कट गयी है ज़िंदगी मुड़कर उसे देखा नहीं
वेा जब विदा करके गयी रूककर उसे देखा नहीं।
कुछ खौ़फ था, कुछ प्यार था, कुछ हादसों का था ख़्याल।
ज़िंदगी जब पास थी छूकर उसे देखा नहीं
 
हर तरह से मैंने उसके बारे में सोचा बहुत
पर, कभी उसकी नज़र लेकर उसे देखा नहीं।
 
मासूम चेहरे पर न जाओ ये अदा क़ातिल भी है
अच्छा हुआ उस जाल में फँसकर उसे देखा नहीं।
 
हमने सुना है तितलियों के पर निकल आये नये
वो आसमाँ है हर कोई छूकर उसे देखा नहीं।
</poem>
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