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हाले दिल क्या सुनाऊँ तुझे वक़्त गुज़रा नहीं भूलता
तेरी बातें नहीं भूलतीं, तेरा चेहरा नहीं भूलता।
वो मुहब्बत की जादूगरी वो जवाँ हुस्न की शोखि़याँ
तेरी बाँहों में गुज़रा है जो पल सुनहरा नहीं भूलता।
 
ग़म जो दुनिया ने मुझको दिया मैं चलो भूल जाऊँ उसे
पर, जो हँस करके तूने दिया ज़ख्म गहरा नहीं भूलता।
 
भूलना जब भी चाहा तुझे कुछ न कुछ याद फिर आ गया
वो शहर,वो गली,वो मकाँ तेरा कमरा नहीं भूलता।
 
कितने सावन बरस कर गये फ़िक्र मैंने कभी भी न की
तेरी आँखों से टपका हुआ एक क़तरा नहीं भूलता।
</poem>
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