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अपन बुता मं सदा उपस्थित, करतब नइ त्यागय आदित्यउसने शाला पहुंच गरीबा, पावत ज्ञान चिभिक कर नित्य।अउ सहपाठी टुरा तिंकर संग, कभू लड़ई झगरा-कभु मेलफुरसुद बखत अमर के खेलत, गंवई मं जइसन चलथय खेल।घर मं बइठे लिखत पहाड़ा, आज आय छुट्टी इतवारतभे मित्र मन तीर बला लिन, जोर जोर से कुहकी मार।मटका आंख गरीबा पूछिस -”मितवा, तुम्मन कार बलाय-मोर बिगर का काम अटकगे, पिया जुवाप कान मं मोर?”नांगर देखा सनम हा बोलिस -”इही तिर बिलम के झन एलआज पाय अवकाश सुघर अक, चल खेलन नांगर के खेल।बुजरुक मन गुरुमंत्र पियाथंय-खेल ले होथय देह बलिष्ठतब चलना हम दौड़ मचाबो, बुजरुक के मानन उपदेश।”सनम-गरीबा जुंड़ा मं फंदगें, धर के मुठिया सुखी दबातखोर बीच हरिया धर जोंतत, नांगर हा आंतर नइ जात।बरसा हा कुचरे रनझाझर, खोर बोहाय छलाछल नीरचिखला सदबदाय धरती भर, तभे चलत नांगर के खेल।सुखी हंकालत डिर तोतो कहि, लउड़ी उबा-बढ़ावत गोड़बइला मन बल भर हल झींकत, भागत कहां काम ला छोड़!ओतन सुद्धू हा कंस खोजत-पुत्र गरीबा हा कंह गीस?बालक मन तिर पहुंच के देखत, एमन खेल करत सब भूल।कथय गरीबा ला सुद्धू हा- “चल घर सुस्ता-जोंतई ला त्यागथोरिक बाद भले अउ भिड़बे, तब तक ले नइ बिगड़य पाग।तंय हा अड़बड़ समझदार हस, पढ़लिख के बन जा हुसियारमगर आज तोला का होगिस-नांगर झींकत बन के बैल!तंय महिनत नंगत जोंगत हस, पीरा भर जाहय सब देहइहां के टंटा टोर के घर चल, सोसन भर खा के कर मौज।”सुद्धू हा लुभात हे कतको, करत गरीबा हा इंकार-“अभी इहां ले टरना मुश्किल, अंड़े हवय नंगत अक काम।अगर काम ला छोड़ के भगिहंव, मोर नाम होही बदनाममंय कमचोर हो जाहंव सब ले, बिगड़ जहय जोंते के पाग।”सुद्धू हा कतको भुरियाइस, मगर गरीबा चेत नइ देतसब उपाय ला हार बाप हा, अपन पुत्र ला लालच देत-“ओरझटिया-घेक्खर नइ मानस, तब तसमई खांहव मंय एकखतम-बाद तंय रंच पास नइ, रेंद मचाबे करके टेक।कहना मान-उदेली मत कर, वरना पछताबे तंय बादअपन मित्र ला घलो साथ धर, गुरतुर जिनिस खाव भरपेट।”जुंड़ा ला बोहि के कथय गरीबा -”कंझट झन कर-चल तो भागहमला सनम खाय बर देहय, पेट फुटत तक बासी साग।मिट्ठी तसमई तंय पकाय हस, पर मंय मीठ ले भागत दूरएकर खाय रोग हा बढ़थय-पेट मं होथय लम्बा क्रीम”सनम संरोटा झिंकिस -”काम कर तिनों हमर घर जाबो।बासी अउर चरोटा भाजी, खूब रबाचब खाबो।सुद्धू बुड़बुड़ात वापिस गिस, लइका मन के सुम्मत जांचलइका मन ले सब झन हारिन, एकर कहां चलय टिंगपांच!बाधा बिगर-निफिकरी बन अब, नांगर चला-उकालत खोरभूख लगत अऊ देह पिरावत, तभो उदबिरिस मारत जोर।कुछ पश्चात सनम लरघा गे, सरकत इसने पेल ढपेलतभे गरीबा अगुवाये बर, लउहा रेंगिस जुंड़ा उझेल।जब पंचघुंच्चा घुंचिस सनम तंह, इरता कोचकिस जोर सुखीकरला के सन्नात सनम हा -”चक चक – चिक चिक – चुकी चुकी।बउग लगा के मंय रेंगत हंव, तेला ताकत भर हकरायशत्रु गरीबा ला सारत हस, लेवत हवस तउन अन्याय।”यदपि सनम हा सुखी ला बोलिस, मगर गरीबा पर गे आंचअपन पक्ष ला पोख करे बर, हेरत हवय सनम के कांच-“डायल, स्वयं धुरा पटकत हस, अउ दूसर पर डारत दोषकायर ला अब कोन खेलाहय, सिरी गिराय-मरे अफसोस।सुखी कोचक के सीख देत हे, तिंही खेल ला करत खराबवास्तव मं तंय खूब आलसी, काबर करन तोर संग खेल!”जहां गरीबा अतका कहिथय, जुंड़ा पटक के सनम जोसात –“मोला तिरयावत बिन कारण, तुम्हर पेट के अंदर दांत।अगर शत्रुता हवय मोर संग, वापिस कर दव नांगर मोरअन के साथ खेल लेबो हम, तुम्हर गरज करना अब व्यर्थ।”जहां सनम हा सेखी मारिस, सुखी – गरीबा करथंय क्रोधमजा चखाये बर सुंट बंध गें, एकदम डंटिन सनम के पास।सुखी – गरीबा मन चेचकारिन, सनम भूमि गिर गीस फदाकफफक-फफक ओकर रोना सुन, अैस फकीरा दउड़ तड़ाक।उहां के दृष्य फकीरा देखिस, तुरुत समझगे कारण साफसुखी – गरीबा ला दमकावत, सनम ला समझत हे निर्दोष-“तुम बाती मन ला पूछत हंव, तुम्मन कब के संडा आवअभिच जाम के खड़ा होय पर, पुरखा तक हे हेरत दांव।
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