Changes

}}
<poem>
तभे देंह मं फूर्ति लगत-मंय बइठ खांव नइ खाना।तभे अटकिहय काम-बुताही ए जीवन के बाती।“तंय बुजरुक रटाटोर कमावत, तब मंय हंव भरपूर जवानतोर प्रेरणा ले उत्साहित, महिनत ला करिहंव प्रण ठान”सुखी हा अपने रद्दा रेंगिस, सोनसाय निकलिस ए ओरफइले रिहिस बबूल के डाली, काँटा हा फइले सब ओर।ओकर गोड़ चभक गिस कांटा, सोनू दरद मं करथे हायकांटा ला हेरे बर सोचिस, पर असफल चल दीस प्रयास।मण्डल हा सुद्धू पर बिफड़िस – “दरद बढ़ाय धरे हस राहकांटा ला बगराय सबो तन, ताकि मरय मनसे अनजान।यद्यपि तंय कांटा गड़ास नइ, तब तंय कहां ले पाबे दोषबिगर जीव के बपुरा कांटा, फोकट हो जाहय बदनाम।पर मंय हा दिग्भ्रमित होंव नइ, समझत खूब कपट के चालपैर मं कांटा टूटिस रट ले, लहुट जहय गुखरु के घाव।मोर पांव हा पंगु हो जाहय, चले फिरे बर मंय असमर्थमंय स्पष्ट जवाब मंगत हंव – का कारण दुश्मनी उठाय?”सुद्धू कथय -“भड़क झन मण्डल, तर्क वितर्क के वन झन घूमतोर मोर शत्रुता कहां कुछ, नइ पहुंचांव दर्द तकलीफ।तोर पांव मं कांटा गड़ गिस, ओहर तो बस धोखा आयमोर पास चिमटा पिन तेमां, कांटा ला झप देत निकाल।”सोनसाय के पांव ला राखिस, सुद्धू निज घुटना पर जल्दपैर मं कांटा घुसे जउन कर, पिन से कोड़ हलावत खूब।कांटा हिल के ऊपर आइस, चिमटा मं निकाल दिस खींचअपन हथेली कांटा ला रख, सोनू ला बन नम्र देखात।कहिथय- “कांटा बाहिर आ गिस, अपन फिकर ला तंहू निकालव्यर्थ गोठशत्रुता बढ़ाथय, फइलत अमर बेल कस नार।”सोनसाय हा कहिथय रोषहा – यद्यपि कांटा हा निकलीसलेकिन ओकर दर्द शेष अभि, जेहर कभू मिटन नइ पाय।मंय अहसान तोर नइ मानों, निंदा लइक तोर सब चालकुआं गिराके फेर निकालत, ओहर कहां आय उपकार!ओहर आय बड़े हत्यारा, प्राण हरे बर उदिम उचैसतइसे दुख पीरा बांटे हस, करिहय कोन तोर तारीफ?”सोनसाय हा उहां ले हटगे, आगू बढ़िस थोरकिन दूरपरस आत टपटप ओकर बल, जउन हा हंफरत लेवत सांस।परस किहिस- “मंय तोला खोजत, तोर एक ठक मोतीखेतओमां नांगर चलत रिहिस तब, उहें फकीरा खब ले अैस।ओहर रेंगत नांगर रोकिस -“एहर आय मोर प्रिय खेतसोनू के अधिकार इहां नइ, तुम्मन निकल जाव चुपचाप।”सोनू मानो सोय ले उठगे, कथय झकनका कर के रोष-“मोतीखेत आय मोरेच बस, कोन कथय दूसर के आय?अगर फकीरा हक बतात तब, चल तो देखंव ओकर टेसओकर नसना टोर के रहिहंव, तभेच मोर चोला हा जूड़।मंय हा पटवारी तिर जावत उही दबाहय पाती।नाप जोख के उही बताहय – कोन करत गद्दारी।सोनू हा पटवारी तिर गिस, स्वार्थ सिधोय चलिस हे चाल-“शिक्षक अगर करत आमंत्रित, अस्वीकार तभो ले ठीक।अगर नर्स हा करत नमस्ते, उहू ला ठुकरा सकत बलातपर पटवारी मन हा चुम्बक, आत तुम्हर तिर बिगर बलाय।कृषक के भाग्य तुम्हर तिर होथय, नक्शा कंघी लौह जरीबजिलाधीष अव गांव के तुम्मन, सुनना परत जमों आदेश।”पटवारी हां हंस के बोलिस- “मोर प्रशंसा झन कर व्यर्थमंय अकास मं उड़त गरब कर, अगर काम तब कहि दे साफ।?”सोनू कथय -“तंहू जानत हस-हवय एक ठक मोतीखेतओमां अन्न उपजथय गसगस, नाम धरे तब मोतीखेत।गीन भृत्य मन धान बोय बर, ओमन उहां करत हें जोंततभे फकीरा उंहचे पहुंचिस, काम के बीच पार दिस आड़”पटवारी दबके अस बोलिस -“मंहू करत हंव शंका एकमोतीखेत फकीरा के ए, तभे बतात अपन अधिकार।तोर पास हे भूमि गंज अक, मोती खेत के मोह ला छोड़एके गोड़ खजूर के टूटत, तब ले चलत सरसरा ठीक।”सोनसाय हा रुपिया हेरिस, पटवारी ला पकड़ा दीसकहिथय -“मोर बात ला चुप सुन, मोतीखेत हा उत्तम खेत।जइसे तन मं आंख हाथ मुड़, यने सुरक्षित हे हर अंगमगर प्राण के बिना व्यर्थ सब, यने प्राण के बहुत महत्व।मोतीखेत मोर बर जीवन, ओला तंय कर हक मं मोरमंय भुंइया के लाभ ला पाहंव, तुम रुपिया के नफा कमाव।”धन मं होथय नंगत ताकत, जउन कराय बहुत कम मीतआत्मा ठोकर देथय तब ले- करथय मनसे गलत अनीति।पटवारी हा कुटिल हंसी हंस, कहिथय- “ककरो पक्ष नइ लेंवशासन के वेतन खावत हंव, तब चलिहंव शासन के नीति।तुम “सीमांकन” करा लेव झप, वाजिब तथ्य हो जाहय ज्ञातमोतीखेत सही मं जेखर, भूमि हा जाहय ओकर हाथ।एकर साथ बुता तंय ए कर – पंच ला धर के लेगव साथकभू कभार उठाहयझंझट, दिहीं पंच मन सही जवाब।”सोनसाय हा परस ला नेमिस, परस पंच मन ला धर लैसउहां अैन अंकालू मुटकी, केड़ू घंसिया झड़ी लतेल।पटवारी ला केड़ू हा कहिथय- “तंय हमला बलाय हस कारहमर पास का बुता हे आखिर- एकर सही ज्वाप तुम देव?”पटवारी हा बोलिस कुछ हंस- “मोतीखेत ला जानत खूबसोनसहाय फकीरा दूनों, ओकर पर बतात अधिकार।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits