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पर दूबी अउ कांद घलो हें, जेहर छेंकत फसल के वृद्धिखरपतवार उखान गरीबा, ओला देखत हेरिस बोल-“धान के बिरता ला देखेंव मंय, मोर हृदय मं भरिस उमंगलेकिन जानेंव तोर उपस्थिति, मन मं उभरिस कई ठन प्रश्न।आतंकी अउ देश के अरि मन, अपन राष्ट्र ला करथंय नाशउंकरे भाई तुमन घलो अव, उत्तम फसल ला करथव नाश।मंय किसान बिरता के पालक, पौधा मन मोर पुत्र समानधान के पौधा के रक्षा बर, मात्र मिंही हा जिम्मेवार।मोर पुत्र मन बाढ़ंय सनसन, तंय झन देन सकस कुछ हानिपहिलिच ले तोर बुता बनाहंव, किरिया खाय हवंव प्रण ठोस।”दूबी कांद उखान गरीबा, बना दीस नींदा के ढीकबांस के झंउहा मं खब जोरिस, अब उठाय बर करत प्रयास।झंउहा उठा मुड़ी पर राखिस, चलिस मेड़ तन तन तन दौड़उंहचे जमों कांद ला खपलिस, झंउहा रीता कर लहुटीस।कतका टेम पता नइ होवत, सुरुज ला राखे बादर तोपभूख जनावत तभो गरीबा, करतब पूर्ण करत कर खोप।इही बीच धनवा हा आइस, जेहर ए सोनू के पुत्रएकर आदत घलो ददा सहि- जलनखोर गरकट्टा भ्रष्ट।धनवा चिल्ला हूंत कराइस- “ए खरथरिहा, बूता छेंकघर चल ओंड़ा आत भात झड़, खटिया सुत लव नींद अराम।”कथय गरीबा- “धनवा भइया, काय बतांव इहां के हालखरपतवार ले खेत पटे हे, ओला खन मंय फेंकत मेड़।मोर बुता हा बचे हे अधुवन, करिहंव पूर्ण आज सब कामसैनिक हा दुश्मन ला मारत, तब ओला मिल सकत अराम।”धनवा हेरिस व्यंग्य के वाणी- “तंय कब ले बइला हो गेसजलगस जोंतई पूर्ण नइ होवय, जुंड़ा हा रहिथय ओकर खांद।मोर वचन ला कान खोल सुन- तंय झन झेल व्यर्थ तकलीफजीवन पाएस सुख अराम बर, पर तंय हेरत तन के तेल।”व्यंग्य वचन ला सुनिस गरीबा, सब तनबदन मं लग गिस आग-“तंय हा सोनू के लइका अस, ओकरे सीख चलत हस राह।तंय हा छोटे रेहेस जेन दिन, तोर पिता गुरुमंतर दिससब के संग हंस खेल मजा कर, पर अस्मिता ला अलगे राख।उनकर स्तर निम्न गिरे अस, तन के घिनमिन दीन दलिद्रतंय सम्पन्न धनी के बेटा, तोर ओहदा पद हा ऊंच।दूसर संग तंय प्रेम बना रख, मंदरस मीठ बोल ला हेरपर वास्तव मं होय दिखावा, अंदर हृदय घृणा ला राख।मोर साथ मिट्ठी अस बोलत, मगर हृदय मं मारत बाणतब तंय मोर बात ला चुप सुन, मंहू बतात जगत के सत्य।हम्मन नित अभाव ला झेलत, तब फिर कहां मजा सुख पान!दुर्गति रहिथय गाड़ के खमिहा, तलगस भेदभाव के रोग।कपड़ा कल मं श्रमिक कमाथय, चुहा पसीना जांगर टोरसब के तन ढंक के पत राखत, मगर ढंकत नइ खुद के लाज।पर के भोभस मं भर देवत, रड़ श्रम कर किसान मजदूरअपन पोटपोट भूख मरत नित, सुख सुविधा ले रहिथंय दूर।यदि तुम धनवन्ता मन चाहत, होय श्रमिक पर झन दुख भारअपन धन दोंगानी ला बांटव, लूटव झन पर के अधिकार।”“तोर ददा हा धन कमाय अउ, मोर चई मं सुपरित दीसमोर पास आ बांटा देहंव- बोहनी मं थपरा दस बीस।आज जहर अस बचन ढिले हस, ओकर कसर लुहूं मंय हेरधधकत आत्मा तभे जुड़ाहय, तब मंय सोनसाय के लाल।”जरमर करत पढ़त कंस कलमा, धनवा रेंगिस पटकत गोड़पुनः गरीबा करतब टोरत, कांद अउ निंदा उचात खखोड़।उदुप एक ठक बिखहर बिच्छी, ओला झड़का दीस चटाकझार चढ़त सनसना देह पर, ओकर जीव बस एक छटाक।वापिस होत गरीबा हा अब छोड़ कमाती डोली।बाय बियाकुल होगे- मुँह ले निकलत कातर बोली।धनवा ला अमरा लिस तंहने, कहत गरीबा नम्र जबान-“भइया, तोर मदद मंय मांगत, रंज छोड़ के कर उपकार।बिखहर टेड़गी हा चटका दिस, झार चढ़त होवत बेहालझार उतारे के दवई ला जानत, कर उपचार मोर तत्काल।”करत गरीबा बहुत केलवली, पर धनवा देवत नइ ध्यानघाव के ऊपर नून ला भुरकत, देत ठोसरा टांठ जबान।“खरथरिहा अस मोर बात ला, चुटचुट फांके हस हुसनाकमोर शरण अब काबर आवत, जा अब बजा काम चरबांक।”कथय गरीबा- “काम करत मंय, टेड़गी चटका- कर दिस काममितवा, बाचिस तोर काम अब- विष उतरे कहि दवई लगाय।”“यदि तोला बिच्छी तड़कातिस, टांयटांय कइसे धर राग!आभा मार दुसर ला तंय हा, ए तिर ले पंचघुंच्चा भाग।”“मंय हा गल्ती करेंव जेन अभि, छोटे समझ क्षमा कर देवमोला सिरिफ आसरा चहिये, मोर कष्ट ला भिड़ हर देव।यदि भविष्य मं तंहू अटकबे, मंय हा बनहूं धारन तोररेत हा ईंट के मदद ला करथय, तब बन जाथय भव्य मकान।”“तोर जरुरत होय कभू नइ, तंय जन धन ले कंगलाहीनअपन मदद मंय स्वयं करत हंव, मंय जन धन ले पूर्ण समर्थ।बेर हा सब ला रफ ला बांटत, ओकर तिर रफ के भण्डारचन्दा ले कभु मदद मंगय नइ, चंदा भीख मं मंगत प्रकाश ”“कोन जीव भावी ला जानत, कभू ना कभु पावत हे कष्टओहर कतको होय शक्ति धर, मदद ला मांगत पर के पास।होत समुन्दर विस्तृत गहरा, ओकर तिर जल के भण्डारलेकिन नदी ले पानी मंगथय, आखिर ओहर बनत लचार।वास्तव मं तंय खूब सबल हस, पर निर्बल ला मंगबे शक्तितंय अतराप के धनवन्ता अस, पर गरीब ले मंगबे भीख।”
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