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रखिस गरीबा प्रश्न कठिन अस- “दीवाली होली तक पर्वओमन ला सब कोई जानत, उनकर हवय खूब यश नाम।मगर हरेली के गुण गावत, देवत सब ले अधिक महत्वहवय हरेली मं का प्रतिभा- मोर प्रश्न के उत्तर लान?”“दीवाली होली मन उंचहा, धुमड़ा खेदत करा के खर्चहर मनसे बर ओमन नोहय, कुछ सम्पन्न के उत्सव आय।बहुत दयालू परब हरेली, सब झन मना सकत बिन भेदथोरको आर्थिक हानि होय नइ, हे सजला सुकाल ए पर्व।”“हाँ, वास्तव मं समझ गेंव मंय, मनसे हा कभु नइ फिफियायफोकट मं प्रसन्नता मिलथय, तब तिहार वास्तव में श्रेष्ठ।”एकर बाद गरीबा - सुद्धू लेवत हें खर्राटा।बड़े फजर खटिया ला तज के उठगें लउहा लाटा।नित्यकर्म ले निपट गरीबा, गाय गरु खेदिस गउठानकोठा के गोबर ला हेरिस, खरहेरिस गरुवा के थान।गंहू पिसान मरकी ले हेरिस, सानिस निर्मल जल मं नेमलोंदी बनगे तंह थारी रख, जावत हवय खइरखा डांड़।अमरिस जहां गाय गरुवा तिर, लोंदी ला खवात कर हर्षहलू हाथ धन मन ला सारत, धन मन हा कूदत मेंछरात।“संहड़ादेव” के पास मं पहुँचीस, करिस प्रार्थना श्रद्धासाथधरती पर सुत जथय गरीबा, संहड़ादेव ला टेकत माथ।सुन्तापुर मं जतिक कृषक हें, एकरे असन जमावत कामगाय गरु एकजई जहां हें, ग्रामीण मन बर तीरथधाम।हे मंगतू बरदिहा उही ठंव, धरे हे दसमुर-डोंटो कंदकथय गरीबा ला प्रसन्न मन- “संहड़ादेव ला करेस प्रणाम।अब ओकर प्रसाद ला खावव, लेकिन सुनव एक सच गोठ-मलई चाप – मेवा के मिठाई, यने आय नइ उंचहा चीज।वन के कांदा कुसा ए एहर, नाम हे दसमुर डोंटो कंदआज के दिवस इही हा बंटथय, तंहू चहत तब कहि के मांग।”कथय गरीबा- “दे प्रसाद झप, करिहंव ग्रहण प्रेम के साथजमों जिनिस मं शुद्धता हावय, पर्व के भी हे निर्मल रुप।अउ कई ठक हें देवी देवता, ओमन बसथंय मंदिर भव्यउंचहा वस्तु प्रसाद मं लेवत, गहना पहिरत हीरा सोन।पर ग्रामीण के ग्राम देवता, जेकर नाम हे संहड़ादेवखुले अकास के नीचे खुश हे, ओकर तिर नइ कुछ टिमटाम।देवता हा प्रसाद मं लेथय- जंगल के जड़ी बूटी कंदएकर देह हवय बिन गहना, आज प्राकृतिक हे हर चीज।”मंगतू हा प्रसाद ला अमरिस, लीस गरीबा लमा के हाथहर्षित मन प्रसाद ला खावत, हृदय मं रख श्रद्धा के भाव।पिनकू उंहचे रिहिस उपस्थित, जेन आय कालेज के छात्रकहिथय -“दाई हा इहां भेजिस, ओकर बात मान मंय आय।धन मन ला लोंदी खवाय हव, याने होय पिसान के खर्चलेकिन मोर उमंझ ले बाहिर- काबर करत गलत अस काम!मनसे बर अनाज के कमती, उंकर जरुरत सदा अपूर्णतब गरुवा ला कार खवावन, आखिर एकर ले का लाभ?”मंगतू तिर मरकी तेमां उबले कांदा के पानी।उही नीर ला नरा मं भर के पिया दीस भैंसा ला।मंगतू हा पिनकू ला बोलिस- “पशु के ऋणी आन इन्सानगाय-भैस मन दूध पियाइन, तभे हमर जीवन बच पैस।बइला-भंइसा करिन परिश्रम, तब उबजिस हे ठोस अनाजओला हम्मन खाय पेट भर, तभे बचान पाय हम जान।वास्तव मं पशु मन उपकारी, उंकर खवाय ले हमला लाभयदि घिव हा खिचरी मं छलकत, खबड़ू पावत उत्तम चीज।”पिनकू कथय- “ठीक बोलत हस, मंय हा शहर मं देखेंव दृष्यउहां के स्वार्थी मनखे मन हा, गाय भैंस के दूहत दूध।लेकिन दूध दुहई रुकथय तंह, मार पीट के देत निकालपशु मन किंजरत आवारा अस, दुर्घटना के होत शिकार।अगर एक के टांग हा टूटिस, दूसर पेट बड़े जक घावबिना सुरक्षा के बपुरा मन, असमय जात मौत के गोद।”“मानव होथय क्रूर भयंकर, उंकर कथा ला फुरिया देसउंकर स्वार्थ के पूर्ति तभे तक, पशु के सेवा करथंय खूब।पर पशु मन असहाय हो जाथंय, सड़क मं छोड़त हें मर जायएहर सहृदयता के दुश्मन, बिन मुंह पशु पर अत्याचार।”कुछ रुक मंगतू हा फिर बोलिस- “पिनकू, तंय हस निश्छल जीवपशु ला भूखा भटकत पावस, उनकर सेवा कर बिन स्वार्थ।पशु के कमई ला खा के बाढ़ेस, तुम पर हवय कर्ज के बोझसेवा करके बोझ उतारो, पशु ला अपन हितैषी मान।”पिनकू हा स्वीकार लीस फट, तभे उहां धनवा हा अैसओकर आंख मं रकत हा छलकत, नाक फुसन अकड़ावत बांह।देखिस उहां गरीबा ला तंह, बोलिस गरज गिरे अस गाज-“अरे गरीबा, नाश करत हस, सुन्तापुर के रीति रिवाज।हम्मन गांव के परमुख मालिक, दीवाली उत्सव जब आतहमर जानवर के टोंटा मं, सोहई बंधत हे सब ले पूर्व।यने जतिक अस हवय काम शुभ, हमर हाथ ले होत मुहूर्तपर तंय हा बुगबुग आगू बढ़, चरपट करेस कार्यक्रम आज।हमर ले पहिली कार आय तंय, पशु ला लोंदी कार खवायसंहड़ादेव के कर देस पूजा, आखिर कोन दीस आदेश?”कथय गरीबा हा अचरज भर- “धनवा, तंय हा क्रोध ला थूंकमंय हा आय तोर ले पहिली, तब पहिली पूजा कर देंव।पूजा-सेवा सहायता मं, स्पर्धा भावना हा व्यर्थपूजा मं श्रद्धा भर चहिये, मात्र दिखावा बिल्कुल व्यर्थ।”
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