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'''लाखड़ी पांत'''
धरती माता सबके माता-सब ले बढ़ के गाथा।
मोर कुजानिक ला माफी कर मंय टेकत हंव माथा।
अन्न खनिज अउ वृक्ष हा उपजत तोर गर्भ ले माता।
सब प्राणी उपयोग करत तब बचा सकत जिनगानी।
 
“”कहां लुका-भागे डोकरा?
तोला खोजत हन सब कोती
सुन्तापुर के सब छोकरा।
कहां लुका भागे छोकरा…?
चुंदी पाक गे सन के माफिक
अंदर घुसगे आंखी
बिना दांत के बोकरा डाढ़ी
पक्ती – पक्ती छाती।
झड़कत रथस तभो ठोसरा…।
हाथ गोड़ के मांस हा झूलत
कनिहा नव गे टेड़गा
कउनो डहर जाय बर होथय
धरथस कुबरी बेड़गा।
सरकस के भइगे जोकरा…।
हमर मितान आस तब तो हम
आथन तुम्हर दुवारी
घर ले निकल तुरुत आ वरना
खाबे नंगत गारी
अउ हम्मन खाबो बोबरा।
कहाँ लुका-भागे डोकरा।
 
लइका मन हा नाच गीत गा अब तक खड़े दुवारी।
पर सुद्धू के पता लगत नइ- कहाँ गीस संगवारी।
रंगी जंगी गज्जू गुन्जा, मोंगा संग मं पुनऊ थुकेल
बाहिर मं रहि काय करंय अब, अंदर जाय बढ़ा दिन गोड़।
छोकरा मन घर अंदर घुसरिन, सब ठंव जांचत चोर समान
मुंह रख हाथ इशारा देवत, बंद रखे हें अपन जबान।
देखिन – सुद्धू सुते खाट मं, आंख बंद कर अल्लर देह
हला – हला झींकत चिल्लाइन, पर सुद्धू देवत नइ स्नेह।
लइका मन गुदगुदा डरिन पर, सुद्धू हा नइ लिस कल्दास
नाक मं अंगरी ला रख देखिन, मगर बंद हे ओकर सांस।
अतिक बखत तक लइका मन हा, रहि के बिधुन करत हें यत्न
जेन गरीबा हे अनुपस्थित, ओहर पहुंच गीस ए बीच।
कथय गरीबा बच्चा मन ला – “”काबर करत उदबिरिस व्यर्थ
मोर ददा ला झन केंदरावव, चले फिरे बर हे असमर्थ।
तुम नटखट हठ करे रेहे हव – होय जनउला कथा तड़ाक
तब ओ खेल हा खतमे हो गिस, मोर ददा ला झन केंदराव।”
रंगी कथय -“”डांट झन हमला, ढंगी हवय तोर खुद बाप
ओहर एकोकन नइ बोलत, सोय हवय बिल्कुल चुपचाप।
हाथ गोड़ ला रखे हे अकड़ा, चलती सांस ला रख लिस रोक
ओहर आज बतात बहाना, तब हम अचरज मं हन ठाड़।”
का होगे? कहि तुरूत गरीबा, देखिस अपन बाप के हाल
जानिस जहां बाप हां मरगे, आंसू हा ढर आइस गाल।
यद्यपि अंतस मं दुख नंगत, पर नइ रोइस धर के राग
लइका मन आंसू ला देखिन, उंकर जीव बस एक छटाक।
गज्जू बोलिस -“”हम सुद्धू संग, एकोकन नइ करेन मजाक
तभो गरीबा आंसू ढारत, हमला समझ लड़ंका खूब।
लेकिन सच बिखेद हम जानत – सुद्धू हवय स्वयं चरबांक
ओहर अइसे ढचरा मारत – लइका मन होवंय बदनाम।”
मोंगा किहिस -“”लहुट हम जानत, पर तंय आंसू ला झन डार
इहां पहुंच के जुरूम करे हन, तेकर बर छोड़त हन द्वार।
हमर पुकार करिस सुद्धू हा, दल बल साथ आय हम दौड़
पर अब खुद हा ढचरा मारत, हमर खेल मं पारत बेंग।
ओहर हा बुजरूग मनखे तब, ओकर लाख दोष हा माफ
इही कुजानिक यदि करतेन हम, नाक कान ला खिंचतिस जोर।”
सुनिस गरीबा केंवरी भाखा, कबिया धरिस मया के साथ
कहिथय -“”यदि तुम बिफड़ के जाहव, तंहने मंय हो जहंव अनाथ।
तुमला फोर बतावत हंव मंय – ददा के निकले हे अब प्राण
तुम्हर साथ खेलन नइ पावय, मिट्टी मिलिहय ओकर देह।”
लइका मन सच स्थिति समझिन, रोय धरिन कलपत बोमफार
कतको छेंक लगात गरीबा, तभो बहत आंसू के धार।
मेहरुला बलवैस गरीबा, पर ओहर नइ अपन मकान
दूसर मनसे कर कलपिस पर, ओमन छरकिन ढचरा मार।
दुब्बर बर असाढ़ दू ठक – कारज कइसे निपटाये।
लइका मन ला उंहे छोड़ के रेंगिस कपड़ा लाने।
डकहर नाम एक झन मनसे, जेन हा पहिली रिहिस गरीब
लांघन भूंखन समय ला काटय, दुख अभाव हा ओकर मित्र।
आखिर मं हताश खा गिस तंह, खाय कमाय मुम्बई चल दीस
लगा दिमाग करिस डंट महिनत, तेकर मिलिस लाभ परिणाम।
अड़बड़ रूपिया उहां कमा लिस, सुन्तापुर मं लहुट के अैदस
इहां भूमि घर फेर बिसा लिस, खोलिस एक ठन बड़े दुकान।
जम्मों जिनिस दूकान मं रखथय – ग्राहक रिता हाथ झन जाय
एमां लाभ मिलत मन माफिक, डकहर के धन बाढ़त खूब।
डकहर तिर मं गीस गरीबा, ओहर कर दिस बंद दुकान
लगथय – उहू दुसर तन जावत, हाथ धरे पीताम्बर वस्त्र।
डकहर पूछिस -“”काय बात हे, दिखत हवस तंय खिन्न उदास
तोर काम का हवय मोर तिर, जमों प्रश्न के उत्तर कोन?”
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