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|सारणी=गरीबा / नूतन प्रसाद शर्मा
}}
<poem>
अब बिसनाथ कथय ताकत कर -”मनसे के मनसेच मितान
काबर ककरो जीवन बिगड़य, भोला घलो बिपत झन पाय।
चल हम खैरागढ़ तक जाबो, साहब ला समझाबो साफ
भोला भुला कुजानिक कर लिस, ओला करय हृदय ले माफ।”
जब बिसनाथ मगन मन बइठिन, डग्गा धरिस सरसरा राह
अंदर म घुरुवा हा हाजिर, तीनों धोखा ले अनजान।
एमन जहां अमरथंय थाना, भोला दउड़ उंकर तिर अैजस
ओहर घुरुवा ला बकथय अउ, गाल पीठ पर मुटका दीस
भड़किस -”मोर विरुद्ध लिखा अब, गांव मं बोलेस तेन रिपोर्ट
मोर नौकरी तुरुत छीन अउ, मोला देखा कछेरी – कोर्ट!
कान खोल सुन – एहर थाना, चलथय इहां पुलिस के राज
आज रात गुचकेला खाबे, तेकर हवय कुछुच अंदाज!”
तीनों झन ला हवालात मं डारिन तुरतेताही।
उहां बीरसिंग हाजिर जेकर मुंह पर दुख के रेखा।
थोरिक बखत गुजरथय तंहने, थानेदार मुलू हा अैपस
इंकर बलउवा फिर होथय तंह, एमन पहुंचिन बंधे कतार।
देखा हथकड़ी ओहर कहिथय -”देखव काम होत शुभ नेक।
अपन हाथ मं बेली पहिरव, मुड़ निहरा न्यायालय जाव
उंहचे होहय तुम्हर जमानत, तेकर बाद अपन घर जाव।”
तब बिसनाथ किहिस घबरा के -”तंय हा भले मांग ले नोट
लेकिन बेली ला झन पहिरा, वरना पत पर परिहय चोट।
जेकर हाथ हथकड़ी लगथय, अउ यदि ओकर होथय जेल
ओकर हंसी गांव अउ सब तन, मुड़ ला उठा रेंग नइ पाय।”
मुजरिम मन के मदद करे बर, चंदन भुलाराम मन आय
ओमन रुपिया ला गिन दिन तंह, हाथ मं बेली लग नइ पैस।
भुलाराम, मुजरिम ला बोलिस -”तुम्मन रहव फिकर ला टार
हम्मन तुम्हर जमानत लेबो, तुम्मन होहव आज अजाद।
अजम वकील बहुत गुनवन्ता, रखथय ज्ञान नियम कानून
ओला अपन वकील करे हन, विजय देवाहय हे विश्वास।”
थोरिक मं आरक्षक संग मं, मुजरिम मन न्यायालय अै न
पहिली बखत आय ते कारण, मन मं धुकुर पुकुर घबरैन।
अगनू हा ए बैंक प्रबंधक, उहू हा न्यायालय मं आय
ओकर विरुद्ध दर्ज हे प्रकरण, तउन ला खोलत इनकर पास –
“जल धारा के जउन योजना, पावत कृषक मुफ्त मं नोट
ओमां कृषक कुआं बनवाथय, ताकि खेत मं सिंचई हा होय।
कृषक बिसाल अैास अगनू तिर, अपन समस्या ला रख दीस –
“नवा कुआं ला मंय बनात हंव, पारित हे ओकर प्रस्ताव।
अब मोला रुपिया भर चहिये, बैंक ले तंय कर दे भुगतान
काम के बदला राशि ला चाहत, गुप्त बात ला कहि दे खोल।”
अगनू किहिस -”तंहू जानत हस, लेन देन बिन अरझत काम
बी। डी। ओ। अउ ग्राम सहायक, मांगत हें दस प्रतिशत नोट।
अगर शर्त स्वीकार करत हस, तुरते करहूं सब भुगतान
हम्मन आर्थिक लाभ अमरबो, नवा कुआं बन जाहय तोर।”
हुंकिस बिसाल – “कहत हस ठाहिल, मंय जात रहस्य सब गूढ़
भ्रष्टाचार के विरुद्ध जेहर, अपन बचा के करत कुकर्म।
हे अपराध निरोधक शाखा, उंहचे अगर तोर कुछ काम
ओमन हांक बजा – धन मंगथंय, कोन हा करही उंकर बिगाड़!
चिखला ले जे भगथय दुरिहा, तेन फसल पर भाषण देत
श्रमिक लगा के पेड़ कटाथय, हरियर जग बर किरिया खात।
मनसे करथय गलत आचरण, तेकर जड़ मं धन के मार
अर्थ के बिन हे जगत निरर्थक, मानव हा कोलवा असहाय।
तंय हा मंगत नोट दस प्रतिशत, मंय सब शर्त करत स्वीकार
पर भुगतान देर झन होवय, मोला सच आश्वासन देव।”
अगनू अउ बिसाल दूनों झन गुपचुप बदिन मितानी।
पर अगनू पर बिपत झपा गिस – ओहर खा गिस धोखा।
अगनू घूंस के रुपिया झोंकिस, तभे बिसाल रचिस षड़यंत्र
ओहर अगनू ला पकड़ा दिस, ताकि भविष्य छाय अंधियार।”
अपन बिखेद कलप के अगनू, अपन बिपत ला खोलत फेर-
“मंय अपराध करेंव तेकर बर, न्यायालय मं प्रकरण ठाड़।
ओकर निर्णय आज हे निश्चित, निर्णय हा लटके अधबीच
मंय निर्दाेष या सजा ला पावत – शंकित हृदय हा धक धक होत।”
अब अगनू अउ मुजरिम मन हा, न्यायालय के अंदर गीन
पक्षकार अधिवक्ता बाबू, उहां रिहिन हें कतको जीव।
उंचहा कुर्सी पर बइठे हे, मोतिम महिला न्यायाधीष
अब ओहर निर्णय ला देवत, जेला सुनत उहां के भीड़ –
“अगनू हा रिश्वत ला मंगिस, याने करिस बहुत अपराध
पांच (एक) (डी) व पांच (दो) धारा, अगनू पर लग गिस निर्बाध।
सब आरोप प्रमाणित होगिस, करन पाय झन शंका – वास
गल्ती कारण दण्ड भोगिहय – गिन दू साल के कारावास।”
इही दृष्य यदि फिल्म मं होतिस, अगनू हा चिल्लातिस जोर –
मंय हा रिश्वत नइ मांगे हंव, एको कनिक मोर नइ दोष।
तभो ले मोला दण्ड मिलत हे, मोरे पर होवत अन्याय
अब मंय मोर विरोधी मन ला, पहुंचा रहिहंव यम के धाम।
मगर इहां के दृष्य हे दूसर – अगनू हवय सुकुड़दुम ठाड़
अंदर हृदय बहुत कलपत पर, कहन पात नइ मुंह ला फार।
उहां हमर अभियुक्त खड़े हें, सन खा देखत दृष्य जतेक
अपन जमानत ला करवाइन, नंगत अक रुपिया ला फेंक।
भुलाराम हा लीस जमानत, चंदन करिस मदद बर दौड़
अजम इंकर प्रकरण अधिवक्ता, जेकर बुद्धि हा बहुते तेज।
जहां कार्यवाही हा निपटिस, मुजरिम मन बाहिर मं अैतन
कथय बीरसिंग तुरुत अजम ला -”हम बिन कारण के फंस गेन।
तब ले हम एक बात चहत हन – भोला संग समझौता होन
ओकर गोड़ तरी गिर जाबो, पर प्रकरण हा वापिस होय।”
अजम कथय -”तीन सौ एकचालीस, पांच सौ छै (बी) धारा ठोस
तीन सौ तिरपन – दू सौ चौरनबे, ए धारा मन बहुत कठोर।
भोला ला मनाव बिनती कर, या तुम धरव बहुत ठन राह
पर समझौता होन पाय नइ, प्रकरण चलिहय धर रफ्तार।
लेकिन तुम हिम्मत झन हारव, लड़व अदालत पेशी आव
तुमला दण्ड मुक्त होवय कहि, मंय करिहंव हर किसम प्रयास।”
खेदू साथ मगन हा मिलथय, केंघरिस मगन होय गंभीर-
“हमर गला मं फासी लगगे, तभे आय न्यायालय तीर।
पर तंय काबर प्राण देत हस, तंय का करेस जघन्य अपराध
अपन असन हमला यदि समझत, साफ कथा ला कहि निर्बाध?”
खेदू चारों तन ला देखिस, कहिथय -”मोर कथा झन पूछ
बलवा – आगजनी अउ डाका, यने करे हंव कई अपराध।
कई ठक धारा लगे मोर पर, न्यायालय मं घोषित बंड
मंय बेदाग छूट पावंव नइ, मोला निश्चय मिलिहय दण्ड।
पर छेरकू हा आश्वासन दिस, ओकर ऊपर हे विश्वास
मोर नाव ला उही बचाहय, सब आरोप ले मंय आजाद।”
घुरुवा फांकिस -”गलत बोल झन, तंय बन झनिच हंसी के पात्र
छेरकू हा मंत्री राजनीतिक, जानत राजनीति ला मात्र।
तोला कहां ले छोड़वा सकिहय, छेरकू हा नइ न्यायाधीष
अउ ना कुछ दबाव कर सकिहय, जब न्यायालय पूर्ण स्वतंत्र?”
खेदू बोलिस – “ठीक कहत हस, हवय भविष्य कुलुप अंधियार
साफ बात ला कोन हा कहही, जीवन जब बोहात बिच धार।”
खेदू हा दुखड़ा रोइस अउ, छोड़ दीस अब इनकर साथ
एमन चारों काबर बिलमंय, इनकर खाय चुरे नइ भात।
कांजी हाउस ले स्वतंत्र हो – रड़भड़ भागत गरुवा।
एमन घलो उहां ले टसकिन – बचा के अपने मरुवा।

'''लाखड़ी पांत समाप्त'''
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