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|सारणी=गरीबा / नूतन प्रसाद शर्मा
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<poem>
“तंय उदाहरण जइसन देवत, वइसन रावण जियत समाज
हिनहर मन के लहू चुहकथय, भोगत हवय स्वर्ग के राज।
कागज लकड़ी ला बारे मं, रावण हा समाप्त नइ होय
ओहर रक्तबीज अस बाढ़त, बिपत बांट के सुख ला पात।
जीयत रावण जलगस किंजरत, तलगस दुख पाहय संसार
पहिली एकर बुता बनावव, तब होही जग के उद्धार।
पर ए काम बहुत मुस्कुल हे, हवय दुनों रावण मं भेद
ओ रावण के रिहिस मुड़ी दस, याने रिहिस अलग पहिचान।
तभे राम हा मार गिरा दिस, उहि रावण ला बिल्कुल तूक
अपन लक्ष्य ला राम अमर लिस, उही कथा सुनथन बन मूक।
लेकिन हवय आधुनिक रावण, सबके मित्र नेक इंसान
वेष चाल अउ काम प्रतिष्ठित, हमरे घर कर ओकर थान।
हम रावण ला मारे चाहत, लेकिन कहां अलग पहिचान
तब खलनायक हा बच जाथय, अउ नायक पर परथय बान।”
पिनकू बोलिस -”ठीक कहत हस, इही मं चरपट होवत देश
पर तंय मोला बुद्धू समझत, तब देवत बढ़ के उपदेश?”
मेहरुफांकिस -”गलत समझ झन, मंय देवत हंव नेक सलाह
ठीक बात ला यदि नइ अमरत, तुम धर सकत गलत असराह।
तुम जवान के तिर मं होथय, अड़बड़ शक्ति भयंकर जोश
लेकिन क्रोध अधिक ते कारण, तुम्मन खोवत हव सच होश।
देश विकास करे बर धरथव, करना चहत तुमन नव क्रांति
पर दिग्भ्रमित तुमन हो जाथव, तंहने अपन लक्ष्य नइ पाव।
रावण कोन आय तेला पहिली सच पता लगाना।
ओकर बाद प्रहार करे बर जावव धर के बाना।
अपन बुद्धि ला शांत धीर रख उचित राह पर जाओ।
जउन काम तेला पूरन कर लक्ष्य सफलता पाओ।
'''बंगाला पांत समाप्त'''
</poem>
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