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फसल होय झन होय तभो लेक्रांति प्रकाशन हवय एक ठन, निष्फलता क्रांति हवय मालिक के अर्थ लगात।नामदीन हीन लघु पद देहाती, एमन करत ठोसलग काममगर इंकर तारीफ होय नइ, निंदा तक बर आवत लाज।”मेहरुबोलिस ओहर पत्र मोर तिर भेजिस “ठीक कहत हस, अब सवाल के उत्तर लान –रिहिस रायपुर मं कई बूता, तब तंय उहां कोन दिन गेस!हा रचना लिख धुआंधार।टी। वी। अउ अकाशवाणी मंपूर्ण होय तंह भेज पाण्डुलिपि, तोर जाय के रिहिस विचारओला मंय हा देहंव मानउहां तोर का बूता निपटिससबले पूर्व प्रकाशित करिहंव, होगिस का पूरा उद्देश्य?”मंय देवत हंव सत्य जबान।”बहल अतका बोल किहिस – “मंय गांव मं रहिथंव, तंहू करत हस गांव निवासअउ मेहरु-”दीस भरोसा क्रांति हा जेनपुस्तक मोर व्यथा ला तंय हा सुनबे, अतका असन रखत विश्वास-हंसिया श्रमिक कमावत खेतीप्रकाशित होहय, पर भरपेट अन्न नइ पायझूठ के वार।”हम्मन गंवई मं बसथन तब तोमेहरुबहल बात ला छेंकिन, साहित्य अउ “दरबार हाल’ मं बुझावत नाम।गीनलकर धकर मंय गेंव रायपुरलेखक मन तिर एमन अमरिन, रचना धर साहित्यिक कामअपन अपन परिचय ला दीन।लेकिन उहां पूछ नइ होइसमिलापा दानी सन्तू, अउ उपरहा कटागे नाक।छन्नू ढेला साथ बिटानमंय अकाशवाणी तिर ठाढ़ेसातो बइसाखू परसादी, अंदर जाय रुकत हे पांवहवंय काव्य के गुणी अनेक।केन्द्र के दानी टेस बतावत जेकर रुतबा अड़बड़ होथय, तभे सुकुड़दुम मन डर्रात।सब ले ऊंचा।मोला लड्डू भृत्य हा मिलगे, उही हा देइस नेक सलाह दूसर लेखक हवंय निहू अस छरकत पूरा घूंचा।“तंय अधिकारी तिर जा निश्चयजहां कार्यक्रम के हल रेंगिस, बात बोल मंदरस अस मीठ।कहिबे दानी कथय -”निहू पदी दिन काटत, टीमटाम ले रहिथंव दूर”मित्र सुन लेवइहां लड़े बर नइ आए हंव, सिरिफ सधाहंव खुद के काम।”कार्यालय आज जगत मं पहुंच गेंव मंयबहुत समस्या, मन ला करके पक्का।ओकर पर कइ ठक तकलीफ।देख कार्यक्रम अधिधाशी हातुम्मन बुद्धिमान मनखे अव, मारिस बात के धक्का।देव समस्या ऊपर ध्यान“जनम के कोंदा अस तंय लगथसजेन विषय पर सोच डरे हव, तब बक खाके देखत मात्रओला इहां राख दव खोल।”का सन्तू कथय -”रखे बर चाहत – विश्व शांति पर ठोस विचार पहुंचे हस काबर, कुछ तो बोल भला इंसान?”ऊपर ले खाल्हे तक घुरियाबम घातक हथियार बने हें, साहब ढिलिस व्यंग्य के बाणउंकर होय अब खुंटीउजार।लेकिन मंय हा सिकुड़ खड़े बस – सांवा बीच मं कंपसत धान।मंय बोलेव – “रहत हंव मंय हाछोटे राष्ट्र देश बड़का हें, अटल गंवई हे गोदरी गांवओमन भुला जांय सब भेदकृषक श्रमिक अउ गांव संबंधितबड़े पलोंदी दे नान्हे ला, तुम्हर पास रचना ला लाय।सग भाई अस राखंय प्रेम”पहिली भेजे हंव रचना कइमेहरुकिहिस – “करंव नइ चिकचिक, मगर मुड़ा नइ गीस जवाबमोर बस इही सलाह-तब मंय हार इहां आए हंव“यथा बाग मं फूल बहुत ठक, मोर प्रार्थना सुन लव आप –एक साथ खिल पात पनाह।आकाशवाणी ले चाहत हंवइसने साहित्यिक बगिया मं, अपन नाम सब तन बगरायजमों विधा मन भोगंय राजबिन प्रचार उदगरना मुस्कुलपावंय मान पाठ्य पुस्तक मं, करिहव कृपा मथत मंय आय।”शहराती ग्रामीण समाज।”साहब हा बरनिया के बोलिस सातो कथय -”कान टेंड़ सुन सही सलाहलेखक लइक तोर नइ थोथना”जगत सब बर हे, दरपन देख लगा ले थाह।सब प्राणी हें एक समानसांगर मोंगर अड़िल युवक हसमानव पशु पक्षी अउ कीरा, गांव लहुट सब के नांगर जोंतदेह एक ठन जान।काम असादी के बदला मंकोई ककरो करय न हत्या, श्रम करके झड़ गांकर रोंठ।”दूतर ला झन बांटय पीरहंसिस कार्यक्रम अधिधाशी हा, पर मंय मानेव कहां खराब!गोड़ तरी मोंगरा खुतलाथयमानव सबले बुद्धिमान हे, तब ले ओहर देत सुगंध।मंय बोलेंव – “नम्र बोलत हंव, पर तुम उल्टा मारत लातमंहू आदमी आंव तुम्हर अस, पाप करे नइ रहि देहात।बिगर पलोंदी बेल बढ़य नइ, ना बिन खम्हिया उपर मचानधर आसरा इहां आए हंव, पर खिसिया दूसर के बेधत बान।जान बचाय।”कवि उमेंदसिंग बसय करेला, जेन लड़िस गोरा लेखक मन साथजन जागृति मं जीवन अर्पित, ओकर नाम कहां हे आज?जयशंकर प्रेमचंद निराला, इंकर अमर अंतिम तक नामपर उमेंद ला कोन हा जानतसुन्ता बांधिन, ओकर रचना गिस यम धाम।छिदिर बिदिर होगे सब रचना, एकोझन नइ रखिन सम्हालओकर पुस्तक छप नइ पाइस, तब का जानंय बाल गोपाल!”मोर कथा दानी ला साहब सुन लिस, भड़क गीस आंखी कर लाल –अध्यक्ष बनैन“तोर असन कतरो उहां जतिक अस नगरीय लेखक ला, मंय हा रखत दाब लेखकसंघ के कांख।हगरुपदरुलेखक बनथव, कोन कमाहय बरसा धामपद ला पैन।मेहरु बहल गांव लहुट के काम बजा तंयलेखक, लेख जाय यमराज के धाम।भतबहिरा अस पद नइ पैनछोड़ लफरही निकल इहां ले भड़कत मोर मइन्ता।वरना बुढ़ना यद्यपि एमन तर्क ला झर्राहंवराखिन, करिहंव तोर हइन्ता।लेकिन चलन पैस नइ टेक।साहब मेहरुकिहिस -”लेख मं देथव – जम्मों झन ला गिनगिन के पत लिस, पर मंय बायबिरिंग ना क्लान्तसम अधिकारबिच्छी हा चटपट झड़काथयलेखक संघ मं भेद रखत हव, मर्थे व्यक्ति रहि जाथय शांत।हमला खेदत हव चेचकार।मंय हा उहां ले हट गांव के आएंव – गेंव उबली के पान दुकानजहां बात के परिस अभेड़ा, उबली लग गिस सत्य बतान।ओहर किहिस – “आय हस हंफरत, लेकिन व्यर्थ जात सब खर्च।साहब मन टेंड़ुंवा गोठियाथंय, आंजत आँख व्यंग्य के मिर्च।राजबजन्त्री राई दोहाई, अस तस पर देवंय नइ ध्यानइंकर साथ परिचय अउ बइठक, बस ओमन पाथंय अस्थान।हम्मन इही पास अन्न शहर मं रहिथनजाथय, जानत साहब मन के पोलशहर गांव ला देत समानओमन चाय पान बर आथंयउसने शहराती देहाती, आपुस मं गोठियाथंय खोल।”बांटंय पद मान।”ओतकी मं बोलिस ट्रांजिस्टर, सुघर ददरिया झड़के एकर बाद दानी के कहना ला सुन लवखाय बर बइठिन, जे मनसे के जतका साद।बंटिस उहां पर खाद्य पदार्थकृषक बसुन्दरा मांईलोगन, बंद करव तुम चिर्री गाजरचना के नामे एमां सब ला सुन लव – गांव गंवई के रीति रिवाज।उबली जे ठौंका ला बोलिसमिलिस बरोबर, ओकर मंय पा लेंव प्रमाणदानी होइस पूर्ण सबो के रचना हा स्वीकृत, मंय हा क्रूर शब्द भर पाय।”स्वार्थ।एकर बाद बहल अउ हंसत मेहरुला बोलिस – “दानी करथय नगर निवास“लेखक संघ के बैठक होयजमों क्षेत्र मं पात सफलताहमर पुकार भले झन होवय, चढ़े हवय साहित्यकाश।लेकिन पहुंच जबो हम तुम गांव मं रहिथन, ते कारन हम जावत गर्तदोंय।”हमर लेख मन बिगर पुछन्ता, हारत हन साहित्यिक शर्त।”मेहरुखुलखुल हांसत बोलिस – “मिलिस खाय बर स्वादिल चीजमेहरुकथय – ठीक बोलत हसतेकर लालच तोला धरलिस, होत शहर साधन सम्पन्नतब आबे का बिगर बलाय?”टी। वी। रेडियो पत्र प्रकाशन“हम्मन हा यदि सरलग आबो, लेखक संघ समीक्षक नाम इनाम।हा करिहय पूछउहां खूब अंटा के लेखक चर्चित होथयडोरी बनथय, जुड़त पाठ्य पुस्तक मं नामअलग अलग जे नरियर बूच।”लेखक श्रेष्ठ कहात उही मन, होत प्रशंसित उंकरेच नाम।लेकिन एकर ए मतलब नइबाद रात करिया गिस, हम्मन छोड़ देन फट गांवतंहने होइस नाटक एककर्म करत हम मांग ला राखन“दयामृत्यु’ नाटक के नामे, उहू कर्म हो प्रतिभावान।न्यायालय मं जइसन होथय, घुरुवा मन पर आइस कष्टउंकर कथा ला काव्य बनावत, होय असच के टायर भस्ट।लेखक ए सुरेश सर्वेद।
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