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06:47, 18 जनवरी 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मिलन मलरिहा
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<poem>
मान ले तै मान मलरिहा, इही जिनगानी रे।
जान ले तै जान ले मनवा, इही हमर कहानी रे।
माई-पिल्ला रोज कमाथन, खेतीखार बारी पलोथन।
तरिया तीर खड़ेहे टेड़ा, डुमत डुमत होगे बेरा।
जिनगी ह पहावत इसने, बड़ लागा बाढ़ी रे।
मिरचा धनिया भाटा गोभी, करेला कुन्दरु अउहे लौकी।
रमकेलिया खड़े बिन संसो, तरोई नार बगरे हे लंझो।
भाव निच्चट गिर जाथे ग, निकलथे साग हमर बारी रे।
पढ़-लिख के निनासतहे बेटा, खेतीखार बारी बरछा।
कुदरी-गैती नई सुहावय, बुता बनी ब ओहा लजावय।
कोनो अब कहा तै पाबे, पढ़े-लिखे मेड़ बंधानी रे।
बादर ह दुरिहावत हावय, पानी घलो अब नई माड़य।
खेत-खार कलपत रोवत, मनखे ल बतावत हावय।
अतेक बिकासे का कामके, जरगे जंगल-झारी रे।
</poem>
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