Changes

बेटी / अरुण कुमार निगम

1,029 bytes added, 17:33, 23 जनवरी 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कुमार निगम |संग्रह= }} {{KKCatKundaliyan}} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुण कुमार निगम
|संग्रह=
}}
{{KKCatKundaliyan}}
{{KKCatChhattisgarhiRachna}}
<Poem>
बेटी बिन सुन्ना हे, घर परिवार
बेटी बनके लछमी, ले अउतार।

घर के किस्मत देथे, इही सँवार
बिन बेटी के कइसे, परब-तिहार।

बेटी के किलकारी, काटय पाप
मंतर जइसे गुरतुर, मंगल जाप।

तुलसी के बिरवा कस, बेटी आय
जेखर आँगन खेले, वो हरसाय।

सुनो गुनो का कहिथें, सबो सियान
महादान कहिलाथे, कन्या-दान।

अरे कसाई झन कर, अतियाचार
बेटी के पूजा कर, जनम सुधार।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits