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|रचनाकार=अरुण कुमार निगम
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<Poem>
मोर - मोर के रटन लगाथस, आये का धर के
राम - नाम जप मया बाँट ले, जिनगी छिन भर के।

फाँदा किसिम - किसिम के फेंकै, माया हे दुनिया
कोन्हों नहीं उबारन पावै, बैगा ना गुनिया।

मोह छोड़ जेवर - जाँता के, धन - दौलत घर के
दुन्नों हाथ रही खाली जब, जाबे तँय मर के।

वइसन फल मिलथे दुनिया-मा, करम रथे जइसे
धरम-करम बिन दया-मया बिन, मुक्ति मिलै कइसे।

बगरा दे अंजोर जगत - मा, दिया असन बर के
सदा निखरथे रंग सोन के, आगी - मा जर के।
</poem>
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