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{{KKRachna
|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
मैं ढूंढता रहा उसे बाहर
आसमान की ऊंचाइयों में
पहाड़ की चोटियों
जंगलों के बियाबान में

दूर…बहुत दूर…
धीरे-धीरे ओझल होते
दृश्यों-अदृश्यों में…

थक-हार आखिर जब
अपने भीतर झांका…

वो बैठा मिला निर्विकार
मेरे ही भीतर

मेरे ही इंतज़ार में…