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कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुटने लगता है / फ़िराक़ गोरखपुरी
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[[Category:ग़ज़ल]]
कभी पाबन्दियों से छूट के भी दम घुटने लगता है<BR>
दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दान नहीं होता<BR><BR>
Pratishtha
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