गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
गळगचिया (1) / कन्हैया लाल सेठिया
26 bytes added
,
08:19, 3 मार्च 2017
}}
{{KKCatGadyaKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
सिंझ्या हूँता ही मिनख उठयो अर दीयै रै मूंडै ऊपर तूळी मेळ दी। दीयो चट्ट चट्ट कर’र बोल्यो-बड़ा आदमी इयाँ के करै है ? मिनख हँस’र बोल्यो-अरै तूं हो के ? मन्नै अंधेरै में सूझ्यो ही कोनी !
</poem>
आशीष पुरोहित
154
edits