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गळगचिया (8) / कन्हैया लाल सेठिया
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10:02, 4 मार्च 2017
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दूबड़ी कयो - गाय, चर तो भलांई, पण चींथ मती
गाय बोली, कांईं करूं? रामजी म्हारी भूख नै पांगळी को बणाई नीं!
</poem>
आशीष पुरोहित
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