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गळगचिया (9) / कन्हैया लाल सेठिया
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10:06, 4 मार्च 2017
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<poem>
तिरियां मिरियां भरी तलाई रै दूबड़ी आ’र गळबाथ घाल ली।
लैरां चिड़’र बोली - तन्नै कुण नूंती ही?
बीच में ही मींड़को टर टर कर’र बोल्यो - गैली, अपणायत हुवै जका नूंतै नै को अड़ीकै नीं!
</poem>
आशीष पुरोहित
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