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औरत / कैफ़ी आज़मी

1,271 bytes added, 08:36, 8 मार्च 2017
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उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
कल्बक़ल्ब-ए-माहौल में लरज़ाँ लर्ज़ां शरर-ए-ज़ंग जंग हैं आजहौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक -रंग हैं आजआबगीनों में तपां तपाँ वलवला-ए-संग हैं आजहुस्न और इश्क इश्क़ हम -आवाज़ व हमआहंग ओ हम-आहंग हैं आजजिसमें जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
ज़िन्दगी जहद तेरे क़दमों में है सब्र के काबू में नहींनब्ज़फ़िरदौस-ए-हस्ती तमद्दुन की बहार तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का लहू कांपते आँसू में नहींमदार उड़ने खुलने में तेरी आग़ोश है नक़्हत ख़मगहवारा-ए-गेसू में नहींनफ़्स-ओ-किरदार ज़न्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहींता-बा-कै गिर्द तिरे वहम ओ तअय्युन का हिसार उसकी आज़ाद रविश पर भी मचलना कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
गोशेतू कि बे-गोशे में सुलगती जान खिलौनों से बहल जाती है चिता तेरे लियेफ़र्ज़ का भेस बदलती तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है क़ज़ा तेरे लियेक़हर पाँव जिस राह में रखती है तेरी फिसल जाती है बन के सीमाब हर इक नर्म अदा तेरे लियेज़हर ही ज़हर ज़र्फ़ में ढल जाती है दुनिया की हवा तेरे लियेरुत बदल डाल अगर फूलना फलना ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही ज़िंदगी जोहद में है सब्र के क़ाबू में नहींतुझ नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहींतू हक़ीक़त भी उड़ने खुलने में है दिलचस्प कहानी ही निकहत ख़म-ए-गेसू में नहींतेरी हस्ती भी है जन्नत इक चीज़ जवानी ही और है जो मर्द के पहलू में नहींअपनी तारीख़ का उनवान बदलना उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ कर रस्म के बुत बन्द-ए-क़दामत से निकलगोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकलफ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए नफ़स के खींचे हुये हल्क़ा-ए-अज़मत से निकलक़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए क़ैद बन जाये मुहब्बत तो मुहब्बत से निकलराह का ख़ार ज़हर ही क्या गुल भी कुचलना ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ ये अज़्म शिकन दग़दग़ा-ए-पन्द भी तोड़क़द्र अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वह सौगंध तुझ में शोले भी तोड़हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं तौक़ यह तू हक़ीक़त भी है ज़मर्रूद का गुल बन्द भी तोड़दिलचस्प कहानी ही नहीं तोड़ पैमाना-ए-मरदान-ए-ख़िरदमन्द तेरी हस्ती भी तोड़है इक चीज़ जवानी ही नहीं बन के तूफ़ान छलकना है उबलना अपनी तारीख़ का उनवान बदलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़ तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़ तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़ तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़ बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे तू फ़लातून अरस्तू है तू ज़ोहरा परवीनज़ेहरा परवीं तेरे क़ब्ज़े में ग़रदूँ तेरी है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मींहाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से ज़बींजबीं मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहींलड़खड़ाएगी कहाँ तक कि संभलना सँभलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे</poem>
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