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18:19, 19 मई 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रति सक्सेना
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उससे कहा गया
सपने देखो
उसने तमाम कोशिश की
सपने देखने की
हर बार दिखा ढेर से भात पर
मछली का टुकड़ा
उससे कहा गया
सपने ऊँचे होने चाहिए
उसके सपने में
भात का ढेर ऊँचा होता गया
मछली का टुकड़ा बड़ा
उससे फिर कहा गया
"जैसा सपना देखोगे वैसा बनोगे"
उसके सामने सवाल था
भात बने या मछली का टुकड़ा
उसने सोचा भात से
कुनबे की भूख मिट जाएगी
मछली कोई भी फाँस सकता है
वह सपनो को भुला
भात की जुगाड़ में लग गया।