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अस्वीकरण
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तमाम आतंकों के खिलाफ़ / रति सक्सेना
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,
18:34, 19 मई 2008
उसे टिका दें क्षितिज में
वे फड़फड़ाते हैं
,
उड़ते हैं
फिर टपक पड़ते हैं
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