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कारवां गुज़र गया / गोपालदास "नीरज"
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23:22, 6 सितम्बर 2008
क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,<br>
क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठा<br>
is taraf jamin aur asman udhar utha
ईस तरफ जमीन और आसमां उधर उठा
,<br>
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,<br>
एक दिन मगर यहाँ,<br>
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