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गळगचिया (20) / कन्हैया लाल सेठिया
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08:47, 17 मार्च 2017
<poem>
रूँखड़े परां पंखेरू एक एक तिणखलो चुग र आळो घाल्यों ! आँधी आई र आँख फरूकै जतै'क में आळै नै ले उड़ी । रूखड़ो कयो-आळो तो म्हारै डील पराँ हो तूं धींगाणै ही कियाँ अणखी ?
आँधी बोळी-थारै डील पराँऊँ किस्यो म्हारो गेलो को बग्गै नीं ?
</poem>
आशीष पुरोहित
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