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गळगचिया (46) / कन्हैया लाल सेठिया
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09:31, 17 मार्च 2017
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दिवळै रो निरमोही च्यानणूं तो एक फूंक में ही आप रै ठौड ठिकाणै जांतो रयो पण ओ धुंऊँ तो ढे़टो पावणूं है, जको जठै यो'क बठै सूं सोरै सांस सिरकणै रो नाँव ही कोनी लै।
</poem>
आशीष पुरोहित
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