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गळगचिया (62) / कन्हैया लाल सेठिया
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10:59, 17 मार्च 2017
<poem>
कुम्हार काचै घड़ै ने चाक स्यूँ उतार‘र न्यावड़े री उकळती भोभर में ल्या नाख्यों। घड़ो से‘र बोल्यो - बिधाता आ कांई करी ?
कुम्हार हँस‘र कयो पाणिहारी रै सिर पराँ इयाँ सीधो ही चढ़णूँ चावे हो के ?
</poem>
आशीष पुरोहित
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