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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्‍चनबच्चन
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मैं मस्‍ती का संदेश लिए फिरता हूँ!
 
 
दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है!
 
 
हो जाए न पथ में रात कहीं,
 
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
 
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्‍दी-जल्‍दी चलता है!
 
दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है!
 
 
बच्‍चे प्रत्‍याशा में होंगे,
 
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
 
यह ध्‍यान परों में चिडि़या के भरते कितनी चंचलता है!
 
दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है!
 
 
मुझको मिलने को कौन विकल?
 
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
 
यह प्रश्‍न शिथिल करता है पद को, भरता उर में विह्वलता है!
 
दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है!