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मुक्तक / श्रीकृष्ण सरल

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लेखक: [[श्रीकृष्ण सरल]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=श्रीकृष्ण सरल]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}
सैकड़ों, हजारों, लाखों आते–जाते हैं<br>
उनके आने–जाने से पड़ता फर्क नहीं,<br>
वे बना सकें इस दुनिया को यदि स्वर्ग नहीं<br>
इतना तो हो, वे इसे बनाएँ नर्क नहीं।<br>***<br><br>
यदि किसी एक के भी हम आँसू पोंछ सके<br>
यदि किसी एक भूखे को रोटी जुटा सके,<br>
सौभाग्य हमारा, यदि एसा कुछ कर पाए<br>
अपनेपन का धन यदि हम सब में लुटा सकें।<br>*** <br><br>
हर एक व्यक्ति यह सोचे और विचारे यह<br>
क्यों जन्म लिया, दुनिया में मैं क्यों आया हूँ,<br>
उल्लेखनीय क्या मैंने कोई काम किया<br>
जीवित रहकर दुनिया को क्या दे पाया हूँ।<br>***<br><br>
हम जाएँ, तो हमको यह पश्चात्ताप न हो<br>