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क्षणिकाएँ / अमन चाँदपुरी
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16:57, 23 मई 2017
परिवारोॅ लेली
कुछ लोग
बेची
दे
दै
छै
आँखोॅ के नींद
मनोॅ के चैन।
</poem>
Rahul Shivay
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