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<poem>
अभी शान्त है समय की लहरें
अनिश्चितताओं के बवंडर थम गये हैं

सो गयी हैं कविताएँ
उद्विग्नताओं के कोख से जन्मा करती थी जो

मगर कलम आश्वस्त नहीं है
अपने ही मौन से

मैं निरुद्वेग देखती हूँ सृष्टि को
द्रष्टा भाव से
कामना के किसी क्षण विशेष में
अजस्र चाहती हूँ लेखनी का प्रवाह
तटस्थता के पलों में
अपनी ही भावहीनता से विस्मित
अक्षरों से निर्लिप्त हो गयी हूँ

लेखन की स्वतः स्फूर्णा के सुप्त होने के पीछे
किसी का दिया कोई अभिशाप होगा
या होगी काल की काली दृष्टि

मेरी प्रार्थनाओं में जितना हिस्सा
गृहस्थी और ममत्व का है
उतना ही अधिकृत है कविताओं के लिए

मुझे गुरुर था कि रगों में बहती हैं कविताएँ
मगर इनदिनों नतमस्तक अहं के साथ
प्रतीक्षा में हूँ

स्वयं में काव्य की वापसी के लिए
मेरी प्रार्थना को आशीष चाहिए
दुआ चाहिए
कि लौट आए वो मुझमें
कि लौट आए जीवन शब्दों में !
</poem>
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