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12:39, 10 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चैनसिंह शेखावत
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
पैली-पैली जद जंगळ मांय
चड्डी पैर‘र
अेक फूल खिल्यो
तो मत पूछो काईं हुयो
घास, रूंख, पंखेरू, पून
सगळा राजी हुया घणा
बादळ भी हा बरसण लाग्या
बात भोत फैली
रेडियो टीवी तांईं पूगगी
गाणा बणग्या
गुलजार सा’ब कैयो -
चड्डी पहन के फूल खिला है
चड्डी पहन के फूल खिला है
फेर बस ...
उण रै पछै
अेक ईज फूल
चड्डी पैर’र नीं खिलीज्यो
जंगळ री
इतरी औकात ईज नीं रैई
बो तो आप घूमै
नंग-धड़ंग
तो फूल पानड़ा नै काईं पैरवा
सुपणा रै जंगळ
हिंसक जिनावरां
जंगळ रै सुपणा माथै
डामर री सड़कां
सिकारयां रै राज तळै
फूल अबै आपरा
गाबा भी नीं बदल सकैला
किणी रूंख री
नदी री
पून री
बाध री
सगळां री बातां रा खोमचा
घण्टाघर री छींया सारै
गोळगप्पा बेचता दीसै
चड्डी आळै फूल रो गाणो
गुलजार सा’ब
दबायो सिराणै
अर गमलां रै बूंटां मांय
चुगण लागग्या
जंगळ री फोटूवां।
</poem>