1,256 bytes added,
12:42, 10 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चैनसिंह शेखावत
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
जूण
जाणै जोड़
नफै-नुकसान रो
आखी जिनगी
मिनखाचारो सोधती
जद मिलायो हिसाब
आंगळ्यां माथै
पांगळा सा पग म्हेलती
चितराम सूझ्यो इंसान रो
डोळ सांतरो
बोली निलामी अर भाव
जगती री इण मंडी मांय
जीता जागतो मिनख बणै
माल बिकाऊ दुकान रो
घर कर न्हाख्यो घरकूंड्यो
अळगा सगळा घरआळा
अणसुळझी फाळी बण डोलै
मूंडै लटकायां ताळा
घर रो सुपणो हेठै टेक
माथै ऊंच्यो मकान रो
जूण जाणै
जोड़
नफै-नुकसान रो।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader