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07:18, 11 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गौरीशंकर
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
आज बा
फोन पर हांसी
हांसती-हांसती बोली
छांटा आवै।
म्हूं कोसां-कोस दूर
बैठ्यो हूं।
उणरी हांसी
म्हारै हियै माथै
पड़ंगाजोड़ छांटा करगी
हांसती सी।
</poem>
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