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|रचनाकार=राजेन्द्रसिंह चारण
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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
कागलिया री
कांव-कांव सूं
कांपती कोयलड़ी
ईण्डा फूटण रै डर सूं
कूं-कूं करै
अर लोग सोचै
कित्तो मीठौ गावै है।
</poem>
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