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|रचनाकार=राजेन्द्रसिंह चारण
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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
सियाळै री ठण्डी रात
पाणत कर’र
पाळी फसलां
घणी दोरी
गीगला ज्यूं
पण कदै‘ई
दावौ लाग’र
या भौपारी कानी सूं
भर आवै आंख्यां
ज्यूं गीगला नै
निकाळो
निगळ ज्यावै।

</poem>
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