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05:10, 12 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजूराम बिजारणियां
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
सुंवारता बांकड़ली मूंछ्यां
फेरता मूंडै हाथ
भरता मनड़ै मोद
उठायां सिर गुमैज सूं
धरतां लाम्बा-लाम्बा डिग
देख..
धोरै ढळतै
छेल भंवर भतूळियै नै
खाथी-खाथी
पग उठावती
बा बळखावती
जुवान रेत.!
करती सावचेत टोकी नै
लुकगी सरड़ दाणीं
मा पड़ाल री ओट में।
</poem>
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