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जूण री रेल / नरेश मेहन

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|रचनाकार=नरेश मेहन
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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हारो मन करै
नाता-रिस्ता
रेललाइन हो जावै
सगळा रिस्तेदार होवै
उण माथै चालण आळी
रेल रा डब्बा।

पछै सगळै टेसणां माथै
थमै बा रेल
उतरै-चढ़ै-भंवै
गळै मिलै
अर चाल पड़ै साथै
ईंया चलै बा रेल
सगळा ठाठ सूं खेलै
जूण रा खेल
पण उण रेल में
किणी लाटसाब सारू
आरक्षित नीं होवै
एक भी डब्बो।
</poem>
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