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15:57, 12 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नरेश मेहन
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
आपरा काम काढण
लोगड़ा बरतै
हरमेस
म्हारा ई खांदा।
म्हनै ठाह ई नीं पड़्यो
कदै ई इण रो
नीं कदै ई खांदा बोल्या
पण बरतीजता रैया।
एक दिन
हद पार होयगी
म्हारै खांदा बैठ
म्हारै ई गांव में
कोई लाय लगाग्यो
दंड पण मिल्यो
म्हारै खांदा नैं
खांदा दूख्या
रोया-कूक्या-बरड़ाया
पण सुणीं नीं कोई उण दिन
अणमणां होय
टूटग्या म्हारा खांदा।
</poem>
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