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|रचनाकार=सुरेन्द्र डी सोनी
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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
एक गाड़ी
अर एक होमगाड़ रै बूतै
बूथ रै मांय अरड़ा‘र
भलो ई ठाकर हुयो थूं तो
काम सावळ करो थे

रै !
थारै सूं के छानो
कै कब्जै मैं है
सगळो बूथ
च्यारूं कूंट लट्ठ लियां ऊबा
डेमोक्रेसी रा पूत
नीची करकै मूंडी
चाल पड़्यो गाडी रै कानी
वा‘रै सिस्टम राम पुरजा।

</poem>
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