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नूंई घटना / सतीश गोल्याण

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|रचनाकार=सतीश गोल्याण
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
जोरां सूं कवि सम्मेलन चाल रह्यो हो
सै गा सै कवि मंच माथै बैठ्या
माइक कानी भूखी निजरां सूं देखै हा
माइक हाथ लागतां ई धाप-धाप‘र फेंकै हा
इतै में मंच चरमरायो
धड़ाम सूं निचै आयो
सगळा कवि गुड़ग्या
कीं फंसग्या की रुड़ग्या
आयोजक रो चै‘रो उतरग्यो
बीं‘रै माथै पर पसीनो निसरग्यो
बो हाथ जोड़तो थकां बोल्यो
म्हूं भोत सरमिन्दो हूं
कवि बोल्या, इण में
सरमिंदगी आळी कीं बात नीं है
पीड़ ता हुवै, पण सागै अेक खुषी री बात है
बीं‘रै नीचै पीड़ दबगी
क्यूंकै म्हाने कविता लिखण खातर
अेक नवीं घटना मिलगी।
</poem>
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