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03:01, 14 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सतीश गोल्याण
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
माणस चल्या जावै
पण बातां रह जावै
सुणनियां चावै ना सुणै
पण,
कैविणयां तो कै‘जावै
थोड़ो बोलै, अर
बोळो सुणै
बो‘ई गुणीजै
थोड़ो बोलण आळो ई
बोळो सुणीजै
स्याणा माणस काढै
बात रो नितार
बै आगै जदई बौले
दिखै बांनै कीं सार।
</poem>